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सना॑ पुरा॒णमध्ये॑म्या॒रान्म॒हः पि॒तुर्ज॑नि॒तुर्जा॒मि तन्नः॑। दे॒वासो॒ यत्र॑ पनि॒तार॒ एवै॑रु॒रौ प॒थि व्यु॑ते त॒स्थुर॒न्तः॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sanā purāṇam adhy emy ārān mahaḥ pitur janitur jāmi tan naḥ | devāso yatra panitāra evair urau pathi vyute tasthur antaḥ ||

पद पाठ

सना॑। पु॒रा॒णम्। अधि॑। ए॒मि॒। आ॒रात्। म॒हः। पि॒तुः। ज॒नि॒तुः। जा॒मि। तत्। नः॒। दे॒वासः॑। यत्र॑। प॒नि॒तारः॑। एवैः॑। उ॒रौ। प॒थि। विऽउ॑ते। त॒स्थुः। अ॒न्तरिति॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:54» मन्त्र:9 | अष्टक:3» अध्याय:3» वर्ग:25» मन्त्र:4 | मण्डल:3» अनुवाक:5» मन्त्र:9


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब ईश्वर के विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (यत्र) जिसमें (पनितारः) व्यवहार करने अर्थात् स्तुति करनेवाले (देवासः) विद्वान् लोग (एवैः) प्राप्त करनेवालों से (उरौ) बड़े (व्युते) आवरण अर्थात् दूसरे करके ढाँपने से रहित इस प्रकार प्रसिद्ध (पथि) मार्ग में (अन्तः) मध्य में (तस्थुः) वर्त्तमान हैं (तत्) वह (पितुः) पालन करने और (जनितुः) उत्पन्न करनेवाले (महः) श्रेष्ठ पूजा करने योग्य से (जामि) उत्पन्न हुआ (आरात्) दूर वा समीप से जाना जाय और वह (नः) हम लोगों के दूर वा समीप से (सना) प्राचीन काल से सिद्ध और (पुराणम्) प्रथम नवीन को (अधि, एमि) स्मरण करता हूँ, उसके मध्य में आप लोग भी हैं ॥९॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जिसमें सम्पूर्ण संसार स्थित है और जिसकी कही हुई मर्य्यादा से चलते हैं, वह सबका पालक उत्पन्न करनेवाला सब पदार्थों से बड़ा अनादि से सिद्ध ब्रह्म उपासना करने योग्य है, जो उसको जाने तो समीप में वर्त्तमान और न जाने तो अत्यन्त दूर वर्त्तमान होता है ॥९॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ ईश्वरविषयमाह।

अन्वय:

हे मनुष्या यत्र पनितारो देवास एवैरुरौ व्युते पथि अन्तस्तस्थुस्तत्पितुर्जनितुर्महो जामि आरादनुविदितं भवतु तन्न आरात्सना पुराणमध्येमि तस्यान्तो भवन्तोऽपि सन्ति ॥९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सना) सनातनम् (पुराणम्) पुरानवम् (अधि) (एमि) सर्वतः स्मरामि (आरात्) दूरात्समीपाद्वा (महः) महतः पूजनीयस्य (पितुः) पालकस्य (जनितुः) जनकस्य (जामि) जातम् (तत्) (नः) अस्मानस्माकं वा (देवासः) विद्वांसः (यत्र) (पनितारः) व्यवहर्त्तारः स्तावकाः (एवैः) प्रापकैः (उरौ) महति (पथि) मार्गे (व्युते) विगतावर्णे प्रसिद्धे (तस्थुः) तिष्ठन्ति (अन्तः) मध्ये ॥९॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या यत्र सर्वं जगत्तिष्ठति येन प्रोक्तेन मार्गेण गच्छन्ति तत्सर्वस्य पालकं जनितृ सर्वेभ्यो महदनादिभूतं ब्रह्मोपासनीयं यदि तज्जानीयात्तर्हि समीपस्थं, न जानीयाच्चेदतिदूरस्थं भवति ॥९॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो! ज्यात संपूर्ण जग स्थित आहे व ज्याच्या मर्यादेत सर्व वागतात तो सर्वांचा पालक, निर्माता, सर्व पदार्थात मोठा अनादिकालापासून सिद्ध ब्रह्म उपासना करण्यायोग्य आहे. जो त्याला जाणतो तो समीप असतो व जाणत नाही तो अत्यंत दूर असतो. ॥ ९ ॥